फूल पर बैठे,
उसका मधु पिया,
ओर उड़ गए
फूल ने कभी तितली को फटकारा नहीं
फूल ने कभी भौंरे को भगाया नहीं,
फूल ने तितली को ना कभी चोर,डाकू कहा
ना ही कभी फूल ने भौंरे से मुक्ति चाही,
क्यों,पर क्यों ?
मैं असमंजस में हूं,
फूलों ने तितली ओर भौरों से मुक्ति पर कविता क्यों नहीं लिखी?.
मुझे तो यह भी नहीं पता कि फूलों ने ही तो तितली को नहीं बुलाया था,
फूलों ने ही तो भौरों को नहीं बुलाया था?
कभी कभी लगता है ,
फूलों की सुंदरता बहुगुणित हो जाती है जब तितली उस पर मंडराती है,
सच शायद है कि तितली केवल लेती नहीं कुछ देती भी है,
जो दिखता नहीं पर होता है,
हमेशा होता है ,
लेना दिखता है,
देना दिखता नहीं
जो दिखता नहीं
वो भी होता है
यह प्रकृति का गूढ़ार्थ है
यही प्रकृति है।
- विवेक सक्सेना
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