अमेरिका के राष्ट्रपति वैसे तो आजकल विश्व के सबसे चर्चित राजनेता हैं ओर यह चर्चे उनकी महानता के नहीं उनके सनकीपने के हैं।वे पूरी दुनिया को अपनी आर्थिक ताकत के आधार पर धमकाकर सुधारना (जैसा कि वे स्वय मानते है)चाहते हैं।
जो भी हो पर मेरा मानना है कि यह केवल ट्रंप का व्यक्तिगत चरित्र नहीं है।वास्तव में यह "पूंजीवाद" का वीभत्स चेहरा है जो नादान ट्रंप के कारण दुनिया के सामने बेनकाब हो रहा है।(हम गहराई से अध्ययन करेंगे तो हमें ध्यान में आएगा पूंजीवादी /साम्यवादी देशों के अनेक राजनेताओं का यही चरित्र रहा है बस वे ट्रंप की तरह वेबकूफी से दुनिया के सामने बेनकाब नहीं हुए है)
पूंजीवाद की मूल अवधारणा यही है कि दुनिया की सारी ताकत पूंजी में छुपी है।पैसा ही भगवान है।आदमी जो भी कुछ अच्छा बुरा करता है पैसे के लिए करता है।पैसा ही वह आखिरी चीज है जो मनुष्य के जीवन में खुशियां भर सकता है।ओर इसलिए पूंजीवाद अधिक से अधिक पैसा कमाना चाहता है।मन ,बुद्धि,आत्मा का कोई अस्तित्व पूंजीवाद नहीं मानता।वह हर सही गलत तरीके से पैसा कमाना चाहता है।
इसका सटीक उदाहरण है महान अमेरिकी (?)राष्ट्रपति ट्रंप के द्वारा हाल ही में संयुक्त राष्ट्र महासभा के 80 वे अधिवेशन में दिया गय भाषण जिसमें वे बड़े अंहकार के साथ कहते हैं कि ग्रीन एनर्जी एक धोखा है तथा जलवायु परिवर्तन एक बड़ा झूठ है।
आज 25 सितंबर को एकात्म मानव दर्शन के प्रवर्तक स्वर्गीय दीनदयाल उपाध्याय की जन्म तिथि के अवसर पर वर्तमान वैश्विक संदर्भों में पूंजीवाद,साम्यवाद ओर भारतीय जीवन दर्शन का तुलनात्मक अध्ययन करेंगे तो हम समझ सकेंगे कि क्यों भारत ही विश्व को शांति और विकास के मार्ग पर आगे ले जाने में सक्षम है।
No comments:
Post a Comment