Friday, 26 September 2025

अब जो होगा,वो नया होगा!



बातचीत के सुहाने मोड़ पर
फिर ठगे गए,फिर रीते रह गए,
फिर हम अकेले रह गए,
वो चले गए अचानक यों ,
जैसे तितली उड़ गई फूल से,
इंद्रधनुष लुप्त हो गया व्योम से,
मेघ उड़ गए ,
प्यासे रह गए खेत,
सूखी रह गई नदियां 
मुझे पता है,
फिर मिलना होगा,
फिर से बातें होगी ,
फिर से ऐसा ही हो सकता है,
जैसा आज हुआ,
या शायद ऐसा ना भी हो,
पर आज जो खो गया,
वह तो अब नहीं मिलेगा,
जो मिलेगा, 
वह कुछ ओर होगा,
कुछ ओर होगा।
पर वह तो निश्चित ही नहीं होगा ,
जो आज हो सकता था,
जो छूट गया,वो छूट गया
अब जो होगा वो नया होगा,
नया ही होगा।

No comments:

Post a Comment