Friday 3 July 2020

चीन को उतना पीछे हटना होगा जितना भारत चाहेगा।

आओ हम बात करें।
दिनांक-04 जुलाई 2020।


कल पूरी दुनिया आश्चर्य चकित हो उठी।
भारत तो गर्वान्वित था ही।भीषण दहाड़ से जितना डर पैदा होता उससे कई गुना डर भारत के प्रधानमंत्री के अचानक लद्दाख दौर से चीन ओर पाकिस्तान की सरकार और सेना में व्याप्त हो गया।उसका परिणाम भी तुरन्त परिलक्षित हुआ।चीन ओर पाकिस्तान में उच्च स्तरीय बैठकें प्रारम्भ हो गई,वहाँ घबराहट फेल गई।

भारत ने अपना दृढ़ निश्चय व्यक्त कर दिया है अब चीन को तय करना है उसे सदैव सदैव के लिए धोखेबाजी छोड़ना है या युद्ध करना है।

हमारे यहाँ कहावत है कि काठ की हांडी बार बार नही चढ़ती है।चार कदम का अतिक्रमण करना फिर लंबी थकाऊ बातचीत के बाद दो कदम पीछे चले जाना और इस प्रकार दो कदम जमीन पर कब्जा कर लेना।यह चाल अब भारत समझने लगा है।इसलिए भारत को अब बातचीत में रुचि नही है।वह ठोस क्रियान्वयन चाहता है।

अब चीन को उतना पीछे हटना होगा जितना भारत चाहेगा,अन्यथा भारत तो युद्ध के लिए तैयार है।अब चीन की बदमाशी भरी चतुराई नही चलेगी,यह तो तय है।

जब आप युद्ध के लिए पूरी तरह तैयार हो जाते हो तो युद्ध की संभावना बहुत कम हो जाती हैं।पर इस समय दुनिया युद्ध से बचना नही चाहती है।

दुनिया पूरे जगत के लिए खतरा बन रहे चीन में एक निर्णायक परिवर्तन चाहती है।केवल शी जिनपिंग की सत्ता की समाप्ति नही बल्कि उस विचारधारा में बदलाव चाहती है जिसमें से शी जिनपिंग पैदा होते हैं।और लोकतंत्र ही उसका माध्यम है।चीन को लोकतंत्र की ओर जाना ही होगा। आज नही तो कल।ओर इसके लिए चीनियों को पर्याप्त कीमत भी चुकानी होगी।
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*"जन संवाद"*
सकारात्मकता समग्रता संतुलन सौम्यता
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