Friday 3 May 2019

लोकतंत्र के पर्व -मेरी दृष्टि, मेरी अनुभूति (7)

लोकतंत्र की खूबसूरती बनाम विडम्बना 
संदर्भ - कन्हैया और दिग्विजय सिंह 


लोकतंत्र यक़ीनन बहुत खूबसूरत है. किन्तु लोकतंत्र  में होने वाली हर चीज खूबसूरत होती ही है यह भी सच नहीं है. लोकतंत्र की खूबसूरती उसके लचीलेपन में है, उसकी नजाकत में है. हिंदुस्तान के इतिहास  में केंद्र और राज्यों के चुनाव में कई बार ऐसे मौके आये हैं जब मजबूत से मजबूत राजनेता के नेतृत्व में चल  रही सरकार का वोट  के माध्यम  से भोली सी दिखने वाली जनता ने  बड़ी सहजता से तख्ता पलट दिया. मैं  इसे लोकतंत्र की नजाकत ही कहना चाहूंगा.


पर कभी कभी इस खूबसूरत लोकतंत्र में गहरी विडंबनाओं से भी दो चार होना पड़ता है. तब मन बहुत खिन्न हो जाता है. 17 भी लोकसभा के लिए होने जा रहे चुनाव में भी दुर्भाग्य से ऐसे प्रकरण विद्यमान हैं.


हर चुनाव में कई दिग्गज मैदान में होते हैं, इनमें  राजनेता तो  होते ही हैं, बाहुवली, धनबली तथा ख्यातिबली (सेलिब्रेटी ) भी होते हैं और कई  बार एक अदना सा उम्मीदवार उन्हें चुपचाप जमीन चटा  देता है. और तब लोकतंत्र  की  मुस्कराहट मन  मोह लेती है.पर ऐसा हमेशा नही होता है ।कई करणो से कई बार अपराध जगत के सरताज भी निर्वाचित हो जाते हैं।उस समय लोकतंत्र की लाचारी ध्यान  में आती है ।


17 वी लोकसभा में भी दो ऐसे उम्मीदवार खड़े हैं जो राष्ट्र के गौरव ओर स्वाभिमान पर आघात करने वाली शक्तियों के आइकान हैं।पहले हैं कन्हैया कुमार जो बेगूसराय से चुनाव लड़ रहे हैं।तथा दूसरे हैं दिग्विजय सिंह जो कांग्रेस के रणनीति कार हैं तथा भोपाल से चुनाव लड़ रहे हैं।कन्हैया कुमार जेएनयू में उस भीड़ का नेतृत्व कर रहे थे जो “भारत तेरे टुकड़े होंगे इंशाल्लाह इंशाल्लाह”  , “भारत की बर्बादी तक जंग चलेगी जंग चलेगी ,कश्मीर की आज़ादी तक जंग चलेगी जंग चलेगी” जैसे नारे लगा रहे थे।यही उनकी ख्याति का कारण भी है ।दिग्विजय सिंह वैसे तो ख्यातनाम राजनेता हैं।स्वनाम धन्य हैं।कई बातें हैं उनके बारे में कहने के लिए।पर यहाँ जो उल्लेख कर रहा हूँ ,वो है “हिन्दू आतंकवाद” की नई थ्योरी को प्रस्थापित करने की उनकी प्रतिभा ।उनकी इस हिन्दू आतंकवाद की थ्योरी को पुष्ट करने के लिए कई गहरे षड्यंत्र भी रचे गए यह भी सम्भावना व्यक्त हुई है।इन षड्यंत्रों में कौन सहभागी थे अभी कहना मुश्किल है किंतु भविष्य में जब कभी पर्दा हटेगा देश के लिए बड़े शर्म की बात होगी।फ़िलहाल तो दिग्गी राजा भोपाल से दिल्ली जाने के लिए संघर्ष रत हैं।


कन्हैया कुमार ओर दिग्विजय सिंह चुनाव हारेंगे या जीतेंगे कहा नही जा सकता है।हार भी सकते हैं ओर जीत भी सकते हैं।केवल विचारधारा के आधार पर चुनाव होता तो इनकी ज़मानत जप्त होना तय थी।किंतु जाती,धन,प्रौपेग़ेंडा जिसे दिग्गिराजा ने ही शब्द दिया था “मेनेजमेंट” से चुनाव जीते जाते रहें हैं।


आजादी के 7 दशक बाद जनता बहुत परिपक्व हो चुकी है  ऐसा माना  जाता रहा है. जनता जनार्दन है. उसका निर्णय सर आँखों पर. पर मैं तो इतना ही कहना चाहता हूं की चुनाव परिणाम के बाद जो होना होगा वह  होगा पर आम देश प्रेमी जनता के लिए तो ऐसे लोग चुनाव लड़  सकते हैं, यही बड़ी विडम्बना है. 


Thursday 2 May 2019

अभी चुके तो चूकते ही जायेंगे

मसूद अजहर वैश्विक आतंकवादी घोषित हो गया. आश्चर्य है भारत की प्रमुख राजनितिक पार्टी के अध्यक्ष का कोई प्रतिक्रिया नहीं आई. अन्य राजनितिक दलों  से कैसे उम्मीद करें? 

जनता राहुल की मजबूरी समझती है. युद्ध क्षेत्र में प्रतिद्वंदी  कीतारीफ़ कैसे की जा सकती है?  पर तारीफ़ करना जरुरी कहाँ हैं?  सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट पर एयर स्ट्राइक की भी तो तुरंत सीमित तारीफ कर के कुछ समय बाद प्रमाण मांगना शुरू कर दिए थे. सरकार की नहीं पर सेना की तारीफ तो की थी. अभी भी विदेश विभाग के ब्यूरोक्रेट्स की तारीफ कर देते, अमेरिका को श्रेय दे देते, कुछ नहीं तो अब होगा न्याय की तर्ज पर चीन ने न्याय किया है कहते हुए असली श्रेय उसे दे देते.


लगता है की कांग्रेस के वॉर रूम के लड़ाके थक गए हैं . एक लड़ाके तो भोपाल में सीधे "हिन्दू आतंकवादी (? )"के खिलाफ युद्ध रत हैं. स्वाभाविक है उनसे अपेक्षा नहीं की जा सकती थी. किन्तु बाकी लोग कहाँ हैं?  और  यह कोई आकस्मिक होने वाली एयर स्ट्राइक तो थी नहीं. 1-2दिन पहले से खबर थी. और चीन दूतावास से तो राहुल जी के भी सम्बन्ध हैं. वहां तो उनका आना जाना हैं. उन्ही से पूछ लेते क्या होने जा रहा है?


हाँ यह जरूर हो सकता है की दिल्ली के लड़ाके सुप्रीम कोर्ट में व्यस्त हों. आखिर जब शहजादे ही घीरे  हों तो रणनीति यहीं कहती है की सबसे पहले उन्हें ही बचाया जाएं. दीक्कत तो यहीं है की शहजादे अभी युद्ध करना सिख रहे हैं. अभी भी छोटी बड़ी गलतियां कमोबेश रोज हों जाती हैं. तो किधर किधर ध्यान दें महारथी.अब सुप्रीम कोर्ट का भरोसा रहा नहीं. कब क्या न्याय कर दें. अब होगा न्याय की तर्ज पर नागरिकता पर कोई फच्चर फंस गया तो क्या होगा?  जमानत पर पहले से हैं.अवमानना प्रकरण में ऐसे कोई कोर्ट व्यवहार करता है क्या?


शायद लड़ाके सोच रहे होंगे अब ज्योतिषियों की ही बातें मान लें. अभी दिन अच्छे नहीं चल रहे है. इंग्लैंड तक के कोर्ट माल्या और नीरव को छोड़ नहीं रहे हैं, नहीं तो कुछ बड़े शस्त्र  मिल जाते. भारत के कोर्ट भी न्याय करने पर तुले हैं. ज्योतिषियों के अनुसार कुछ दिन रुक जाएं तो उसीमे भला है. 23 मई  के बाद सबका जबाव दें देंगे. सत्ता है तो सब कुछ है. तब अच्छे से जवाब दें देंगे.


ख्याल तो अच्छा है पर जनता परीक्षा के बाद उत्तर पुस्तिका में चार पन्ने जोड़ने को तैयार नहीं है. परीक्षा तो 23 के पहले के पाठ्यक्रम  पर ही होगी और मूल्यांकन भी मॉडल आंसर  के आधार पर.

अभी चुके तो चूकते ही जायेंगे.