Saturday 23 March 2019

आख़िर कब हम एक राष्ट्र की तरह व्यवहार करना सिखेंगे ?

दुश्मन देश पर सैनिक कार्यवाही का श्रेय सत्तारूढ़ दल को लेना चाहिए या नही ? यह एक गम्भीर प्रश्न है ।कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों के प्रकाश में इस पर विचार मंथन करना चाहिए

१) सेना स्वयं  सैनिक  कार्यवाही या युद्ध का निर्णय नहीं लेती है ।सेना अपनी तैयारी ,क्षमता ,रणनीति ओर अपनी आवश्यकता के बारे में सरकार को बताती है ओर सरकार इन विषयों पर निर्णय लेती है।स्वाभाविक है जो इकाई निर्णय लेगी ज़िम्मेदारी भी उसी की होगी।

२)सैनिक कार्यवाही के पूर्व सेना के इंटेलीजेंस के अलावा अन्य एजेंसियों तथा मित्र देशों की इंटेलीजेंस सूचनाओं पर भी विचार करना होता है।यह कार्य भी सरकार के माध्यम से ही होता है ।

३) सैनिक कार्यवाही के पूर्व मित्र देशों को विश्वास में लेना होता है तथा शत्रु देश के मित्र देश क्या भूमिका निभायेंगे इसका आकलन भी करना होता है ।आवश्यक कूटनीतिक चर्चा भी सभी पक्षों से करना होती है ।विश्व राजनीति की दृष्टि से यह महत्वपूर्ण कार्य भी सरकार करती है।

४)सैनिक कार्यवाही के समय देश की आंतरिक स्थिति क्या हो सकती है इसका आकलन तथा तदनुसार पूर्व तैयारी भी करना मुख्यतः गृह विभाग को करना होती है ।इतना ही नहीं परिवहन ,चिकित्सा,नगरीय प्रशासन ,नागरिक आपूर्ति जैसे अनेक विभागों को पूर्व सतर्क रहना होता है ।

५)युद्ध की स्थिति में तथा युद्ध के बाद देश की आर्थिक स्थिति क्या होगी इसका आकलन तथा ज़रूरी अग्रिम  व्यवस्थाएँ भी सरकार की ज़िम्मेदारी होती है

६)युद्ध के पूर्व या युद्ध के समय प्रचार युद्ध का महत्वपूर्ण असर होता है ।शत्रु देश अपने एजेंटो के माध्यम से कई प्रकार की अफ़वाहें फेलाने ,सेना ओर जनता का मनोबल गिरने हेतु प्रोपेगेंडा केम्पेन चलाते हैं ।ग़लत अवधारणाएँ प्रस्तुत जी जाती हैं,यथा युद्ध से कितना आर्थिक नुक़सान होगा ,युद्ध के बाद दुष्परिणामों को आने वाली पीढ़ियों को भोगना होगा ,युद्ध मानवता के ख़िलाफ़ है आदि ।शत्रु देश अपने नुक़सान को नकारता है ओर झूठी सफलता को प्रचारित करता है ।इन सबसे निपटने के लिए सरकार के सूचना ओर जनसम्पर्क विभाग को बहुत काम करना होता है ताकि देश की विश्वसनीयता बनी रहे तथा एक दुनिया में एक परिपक्व देश की छवि उभरे ।

इस प्रकार हम समझ सकते हैं कि सीमा पर या सीमा पार युद्ध तो सेना लड़ती है पर पूरी सरकार ओर देश उसके साथ खड़ा रहता है ।इसलिए कहते भी हैं की युद्ध सेना नहीं पूरा देश लड़ता है । यद्दपी युद्ध हमेशा अंतिम विकल्प होता है,पर युद्ध शुरू हो गया तो पूरा देश उसके साथ जुड़ जाता है । युद्ध जीतते हैं तो पूरा देश ख़ुशी सेझूमताहैजैसे1965,1971’कारगिल या अभी अभी हुई सर्जिकल स्ट्राइक ओर हारते हैं तो पूरा देश अवसाद ग्रस्त होता है जैसे 1962 का चीन युद्ध ।

आजकल सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर कई प्रश्न चिन्ह खड़े किए जा रहे हैं।यथा सबूत माँगे जा रहे हैं,कुछ आतंकियों की ग़लती की सज़ा पूरे देश (पाकिस्तान ) को क्यों दी जा रही है ? यहाँ तक कह दिया गया कि दोनो देशों की सरकारों में मैच फ़िक्स था।ऐसे सवाल खड़े करने का एक ही उद्देश्य है कि सरकार सर्जिकल स्ट्राइक का चुनावी लाभ ना ले सके।यह भी कहा जाता रहा है की लड़ाई तो सेना ने लड़ी,सरकार उसका श्रेय क्यों ले रही है?

इसीलिए यह प्रश्न उत्पन्न होता है की सैन्य कार्यवाही का श्रेय सरकार को मिलना चाहिए या नहीं ?यह प्रश्न केवल आज के लिए नहीं है ? केवल आसन्न चुनावों के संदर्भ में नहीं है।यह प्रश्न सदा सर्वदा के लिए है ।इन प्रश्नो पर देश में एक सामान्य समझ विकसित होना इसलिए भी ज़रूरी है ताकि भविष्य में सबूत माँगने,कुछ लोगों की ग़लती की सज़ा पूरे देश को क्यों तथा मैच फ़िक्सिंग जैसे हास्यास्पद ओर शर्मनाक सवालों का सामना देश को ना करना पड़े ।


आख़िर कब हम एक राष्ट्र की तरह व्यवहार करना सिखेंगे ?

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