देश अब अगले लोकसभा चुनाव के लिए तैयार है ।चुनाव आयोग ने चुनाव कार्यक्रम की घोषणा कर दी है ।राजनीतिक दलों के गठबंधन अब लगभग अंतिम रूप ले चुके हैं ।दलबदल का दौर शुरू हो चुका है ।कई निष्ठावान ओर समर्पित बड़े नाम दल बदल कर अपनी निष्ठा को फ़्रीज़ कर चुके हैं,जो भविष्य में घर वापसी के समय काम आएगी।तय चुनावी मुद्दे जब मीडिया की सुर्ख़ियाँ बटोरने में नाकामयाब होने लगते हैं तो मजबूरी में सामने वाले को “मिर्ची लगने वाले” बयान जवाँ पर बरबस ही आ जातें हैं ।ओर ऐसे मुद्दे जब “लोकतंत्र के चोथे सम्मानित स्तंभ” भारतीय मीडिया की “बड़ी ख़बर” ओर सुर्ख़ियाँ बनने लगतीं हैं तो राजनेताओं को अपनी शैली सही लगतीं है ओर अगले डायलोग सृजित करने के लिए उनकी क्रिएटिव शक्तियाँ सक्रिय हो जातीं हैं।
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में आम चुनाव एक बड़ी आर्थिक गतिविधि भी बन जाती है।कई चालू काम रुक जातें हैं ओर कई “नए काम “ चालू हो जाते हैं ।छोटे छोटे लोगों को छोटे रोज़गार ओर बड़े बड़े लोगों को बड़ा रोज़गार।बड़े स्थापित सम्मानित खिलाड़ियों के अपनी अपनी बारगेनींग ताक़त के अनुसार तय दर से कई गुना दरों पर अग्रीमेंट हो जाते हैं।काले धन की जिजीविषा को सकारात्मक ताक़त मिलना भी इस पुराने होते लोकतंत्र की गुप्त उपलब्धी माना जाना चाहिए। कोई कितना भी चाह ले काले का सफ़ेद ओर सफ़ेद का काला होना ही है।
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में आम चुनाव एक बड़ी आर्थिक गतिविधि भी बन जाती है।कई चालू काम रुक जातें हैं ओर कई “नए काम “ चालू हो जाते हैं ।छोटे छोटे लोगों को छोटे रोज़गार ओर बड़े बड़े लोगों को बड़ा रोज़गार।बड़े स्थापित सम्मानित खिलाड़ियों के अपनी अपनी बारगेनींग ताक़त के अनुसार तय दर से कई गुना दरों पर अग्रीमेंट हो जाते हैं।काले धन की जिजीविषा को सकारात्मक ताक़त मिलना भी इस पुराने होते लोकतंत्र की गुप्त उपलब्धी माना जाना चाहिए। कोई कितना भी चाह ले काले का सफ़ेद ओर सफ़ेद का काला होना ही है।
भारत में होली पर रंग-पिचकारी ,रक्षाबंधन पर राखियाँ, दशहरे पर रावण के पुतले,दीपावली पर पटाखे जैसे सीजनल व्यवसाय की श्रेणी में चुनावी सर्वे,एक्जीट पोल भी जुड़ गए हैं।वैसे हर साल कहीं ना कहीं होने वाले चुनावों के सुआवसरों के कारण ये सीजनल व्यवसाय भी स्थाई श्रेणियों के व्यवसाय के समकक्ष माने जाने चाहिए।
पार्टियों की ,नेताओं की ब्रांडिंग करने तथा रणनीति बनाने का कार्य भी विज्ञान अनुसंधान शैली के उच्च सम्मान प्राप्त जैसी गतिविधि में प्रतिष्ठित होते जा रहा हैं।इसका प्रभाव ओर दख़ल इतना असरदार होता है की पार्टी के सुपर बॉस के निकटस्थ लोगों को कोई सोतन आ गई है ऐसा लगने लगता है।ओर ये कथित कोरपोरेट सोतने अपने साथ दहेज में प्राप्त दास-दासियों की तरह राजनीतिक दलों में आउट सोर्सिंग व्यवस्था को भी स्थापित करवा देती हैं।रासायनिक खेती से जैसे कुछ समय फ़सल की मात्रा तो बड़ जाती हे पर पर गुणवत्ता ,स्वाद ,ख़ुशबू ओर ज़मीन की उर्वरा शक्ती पर गहरे दुष्परिणामों होते हैं ,इसी तरह के प्रभाव राजनीतिक दलों में भी प्रतिलक्षित होते हैं।
ओर सर्वाधिक महत्वपूर्ण है लोकतंत्र के इस पर्व का सबसे सुंदर दृश्य -जन विमर्श।उच्च शिक्षा संस्थानों के परिसरों से लेकर मनरेगा के कार्यस्थलो तक ,काफ़ी हाउस से लेकर नुक्कड़ों की चाय -पान की गूमटियों तक ,उच्च शिक्षित से लेकर अल्प शिक्षित /अशिक्षित सभी पूरे अधिकार से बड़ी बड़ी पार्टियों ओर बड़े बड़े नेताओं सभी की समीक्षा करते नजर आते हैं।
और इन सबके साथ चलते हुए एक दिन मतदान का दिन आ ही जाता हे ।मतदाता हमेशा की तरह “मौन” होकर मतदान कर के आ जाता है।ओर मत पेटियों से चौंकाने वाले परिणाम भी निकलते हैं।ओर अंत में मीडिया,चुनाव विशेषज्ञ घोषणा करते हैं की भारतीय मतदाता परिपक्व हो चुका ओर उसने अपना जनादेश सुना दिया हे।नेता इस जनादेश को स्वीकार करते हैं।
चुनाव आयोग निर्णय से राष्ट्रपति/राज्यपाल को अवगत कराते हैं।आचार संहिता समाप्त होती है।शपथ ग्रहण के साथ “सरकार” बनती है।लोकतंत्र का एक दिन का राजा फिर से आम आदमी बन जाता है ।राजधानियाँ अपने शाब्दिक अर्थ के साथ फिर से जगमगाने लगती हैं।पृथ्वी रूपी लोकतंत्र अपनी धुरी पर एक चक्र पूरा करती है ओर छोड़ जाती हे अनेक बातें विश्लेषणके लिए की आख़िर क्या खोया -क्या पाया ?
हम भारत वासी पुनः लोकतंत्र के इस नए चक्र के पूर्ण होने के केवलसाक्षी नहीं सहभागी ओर सह ज़िम्मेदार होने जा रहे
हैं।मंगल कामनाएँ ।
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