Friday 5 April 2019

लोकतंत्र के पर्व -मेरी दृष्टि ,मेरी अनुभूति (4)

गुणात्मक मतदान के लिए “आम मतदाता शक्ति” सक्रिय हो 


प्रश्न थोड़ा अटपटा है।थोड़ा नहीं शायद बहुत ज़्यादा अटपटा है।क्या आम मतदाता को चुनाव लड़ाने की सक्रिय भूमिका में आना चाहिये ?

सामन्यत: प्रत्याक्षी चुनाव लड़ता है,राजनीतिक दल चुनाव लड़ता है  ओर राजनीतिक दल का कार्यकर्ता
चुनाव  लड़ाने की भूमिका में  रहता है। बोलचाल की भाषा में भी इसी आशय के शब्द प्रयोग होते हैं।

चुनाव  के बाद आने वाली सरकार से आम मतदाता के जीवन में बड़ा परिवर्तन आता है।सरकार के कार्यों, कार्यशैली  ,नीति ओर निर्णयों का असर बहुत व्यापक होता है। कई बार आम आदमी यह सोचता है की मुझे सरकार से क्या  मतलब ? अपनी मेहनत से दाल रोटी कमाता हूँ तथा  अपने में मस्त रहता हूँ ।सामन्यत: वे लोग जो शासकीय सेवा में नहीं हैं  तथा जिनका व्यापार व्यवसाय सरकार के साथ नहीं होता है  उनकी सोच भी यही रहती है।इतना ही नहीं सरकारी व्यवस्था का छोटा कर्मचारी भी सरकारों से रोज़मर्रा के काम में अप्रभावित रहते हैं।

परंतु थोड़े ही व्यापक नज़रिए से सोचें तो हम पाते हैं की शिक्षा,स्वास्थ्य, बिजली,पानी सड़क,यातायात, क़ानून व्यवस्था से लेकर रोज़गार के अवसर,महँगाई पर्यावरण,जैसी कई बातें  हमारे जीवन को सरल या दुष्कर बनाती हैं। यहां तक की  सरकार की नीतियों के कारण जीविकोपार्जन के लिए हमारे व्यापार व्यवसाय पर भी अनुकूल या प्रतिकूल असर पड़ता है।इतना ही नहीं  आंतरिक ओर बाह्य सुरक्षा ,विदेश नीति , दुनिया में भारतियों का सम्मान,विश्वसनीयता जैसे कई मुद्दे होते हैं जो प्रत्यक्ष,अप्रत्यक्ष रूप से कम  या ज़्यादा  हर देशवासी को  उसके वर्तमान या भविष्य को प्रभावित करता है।

इसलिए अच्छी सरकार आए,काम करने वाली सरकार आए,भ्रष्टाचार  को नियंत्रित करने वाली सरकार आए,देश का विकास करने वाली सरकार आए,देश की सुरक्षा को मज़बूत करने वाली सरकार आए,देश की अर्थ व्यवस्था को मज़बूत करने वाली सरकार आए,देश के सम्मान को बढ़ाने वाली सरकार आए, लोकतंत्र  में हर मतदाता नागरिक की यह ज़िम्मेदारी है। केवल मतदान करने मात्र से यह ज़िम्मेदारी पूरी नहीं हो जाती है।एक समय जब बहुत कम मतदान होता था ,मतदान करना ही महत्वपूर्ण लक्ष्य माना गया किंतु अब जब मतदान प्रतिशत बड़ रहा है,गुणात्मक मतदान की ओर ध्यान खिंचना होगा। गुणात्मक मतदान के दो पहलू हैं।पहला है बहुत सोच समझकर ,अनेक बिन्दुओं का विश्लेषण कर किसे वोट देना है इसका निर्णय कर मतदान करना तथा  दूसरा है अपने  सम्पर्कित्त  वयस्क नागरिकों से भी अपने चिंतन को साझा कर  उन्हें भी व्यापक ओर दूरगामी सोच के साथ  मतदान के लिए प्रेरित करना।

इस प्रकार जब आम मतदाता जो किसी राजनीतिक पार्टी का कार्यकर्ता नहीं है,वह भी स्वयं प्रेरणा से,बिना किसी निहित स्वार्थ के ,प्रयास पूर्वक  सम्पर्कित लोगों से चर्चा करता है ओर उन्हें भी गुणात्मक मतदान के लिए प्रेरित करताहै तो हम यह मान सकते हैं की आम मतदाता भी चुनाव लड़वाने की सक्रिय भूमिका में आ गया है।

सामन्यत: चुनाव लड़वाने का काम राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं का माना जाता है।किंतु पुराने होते लोकतंत्र में समय के साथ कुछ अच्छी चीज़ें भी आती हैं ओर कई कमज़ोरियाँ भी घर कर जाती हैं।आज लगभग सभी राजनीतिक दल अपने अपने दलों में स्थापित हो चुकी विकृतियों से परेशान हैं।एक प्रमुख विकृति है गुटबाज़ी। सभी राजनीतिक दल शायद ही इस बात से इंकार कर सकेंगे की उनका दल इस बीमारी से पूर्णत: मुक्त है।कुछ दलों में ऊपर के स्तर पर है,कुछ दलों में नीचे के स्तर पर है,कुछ दलों में चहुँओर है।कुछ दलों में आंशिक है कुछ दलों में पूर्णता में है।कुछ दलों में इलाज हो सकने की स्थिति में है कुछ दलों में लाइलाज है।दूसरा है केड़र में नैतिक मूल्यों का ह्रास।जी हाँ बात तो कड़वी है पर है लगभग सच।केड़र विचारों के प्रति निष्ठावान हो तो भी व्यवहारिक धरातल पर वह वर्तमान या भविष्य के अपने लाभ-हानि के गणित में उलझ जाता हैतीसरा है जाती का विचार।कार्यकर्ता अपनी पार्टी की विजय तो चाहता है पर  अपनी जाती के हित  के साथ ।कई बार कुछ कार्यकर्ता जाती के नाम पर सेबोटेज़ भी कर जाते हैं।चौथा है धन का प्रभाव। यह राजनीतिक दलों के लिए सबसे गंभीर समस्या उभर कर आ रही है।आज सभी राजनीतिक कार्यकर्ताओं चुनाव प्रचार के लिए पूर्ण सुविधा चाहते हैं।इतना ही नहीं कुछ कार्यकर्ता तो मर्यादा को लाँघ कर चुनाव ख़र्चे का व्यक्तिगत उपयोग भी कर लेते हैं।ऐसी ही कई विकृतियों के कारण आज राजनीतिक दल कई परेशानियों ओर अनुचित दबावों के मध्य चुनाव संचालन के लिए मजबूर हैं।ओर ऐसा भी नहीं है की सारा दोष केड़र का है,इसकी शुरुआत कभी ना कभी ,किसी ना किसी कारण से दलों के शीर्ष से ही हुई है।ओर आज भी दलों के वरिष्ठ कहे जाने वाले नेताओं  की ओर से इन प्रवृत्तियों के प्रति स्वीकार्यता प्राप्त है।

एक ओर महत्वपूर्ण ओर लोकतंत्र के लिए दुर्भाग्यजनक तथ्य यह है की पुराने होते लोकतंत्र के साथ बहुसंख्यक मतदाताओं की आदतों को प्रमुख राजनीतिक दलों ने ही बिगाड़ दिया है।शराब,पैसा,जातिवाद से लेकर जाती,सम्प्रदाय के आधार पर फ़तवे चुनाव परिणामों को बहुत बड़ी मात्रा में प्रभावित करते हैं।इतिहास में इन बातों से लाभ ले चुके  दल भी आज इन बुराइयों के बोझ तले दब कर बुरी तरह हाँफ रहे हैं।

अच्छे व्यक्तियों को जिताने का सामर्थ्य आज भारत के राजनीतिक दलों में नहीं है।शायद ही कोई दल अपवाद हो।हर दल केवल उस व्यक्ति को टिकिट देना चाहता है जो जीत सकता है। “जीतने की सम्भावना” ही टिकिट मिलने का सबसे प्रमुख मापदंड बन चुका है।वैसे यह ग़लत नहीं है,पर क़ीस क़ीमत पर यह विचार का विषय अवश्य होना चाहिए।

ऐसी स्थिति में लोकतंत्र के मूल मालिक आम मतदाता में से जागरूक,समझदार मतदाताओं की यह अहम् ज़िम्मेदारी बनती है की वे केवल मतदान के कर्तव्य तक सीमित ना रहकर अपनी सक्रिय भूमिका की ज़िम्मेदारी को समझें।बस उन्हें सावधानी यह रखना है की वे यह कार्य निष्काम भाव से करें ।चुनाव के बाद यदि वे अपने योगदान के प्रतिफल की अपेक्षा रखेंगे तो तो कोई गुणात्मक परिवर्तन उनके माध्यम से नहीं हो सकेगा।इसी प्रकार राजनीतिक दल किसे टिकिट दे इसमें भी उनकी रुचि नहीं होना चाहिए वे भी राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं की विस्तारित (Extended team ) टीम ही कहलाएँगे।हाँ,प्रत्याशी घोषित होने के बाद मतदाता के अधिकतम मानदंडो को जो प्रत्याशी ओर दल पूरा करता हो उसको जिताने का प्रयास करना चाहिए।

ऐसे जागरूक मतदाताओं को निर्णय प्रक्रिया के लिए कुछ बिंदु तय करना चाहिए,जिनके आधार पर वे मतदान का निर्णय करेंगे।उदाहरणार्थ उम्मीदवार की योग्यता,सामर्थ्य ,सक्रियता,।राजनीतिक दलोंकी नीति,नियत,सिद्धांत,विचारधारा । राजनीतिक दलों का शीर्ष नेतृत्व समूह,उसकी छबी,कार्य क्षमता,कार्यशैली,उनका विजन। दल ओर उम्मीदवारों का इतिहास।वैश्विक ओर देशीय संदर्भ में आज के भारत की  आवश्यकता ओर प्राथमिकताएँ।उन्हें कौन सा दल या दलों का समूह पूरा कर सकता है ? आज जब गठबंधन सरकारों का दौर है तो यह भी आकलन ज़रूरी है की कौन से गठबंधन स्थाई ओर प्रभावी सरकार दे सकते हैं।ओर राजनीतिक दलों के वादे ओर घोषणाएँ भी-वे  सुविचरित हैं या चुनाव जीतने के हथकंडे ।

जाग ग्राहक जाग की तरह जाग मतदाता जाग,लोकतंत्र की सफलता के लिए यह मूलमंत्र है।तो आइए संख्यात्मक के साथ साथ गुणात्मक मतदान के लिए आम मतदाता शक्ति के रूप में हर निर्वाचन क्षेत्र के हर गली ,मोहल्ले कालोनी में हम अपनी भूमिका तय कर स्वयं पहल कर सक्रिय हो जायें।जब तक अच्छे प्रत्याशी ओर अच्छे दल को जनता नहीं जितायेगी  दिग्भ्रमित राजनीतिक दल मजबूरीवश ही क्यों ना हो लोकतंत्र की मूल भावना से खिलवाड़ करते रहेंगे।वोटों के सौदे होंगे,वोटों के लिए षड्यंत्र होंगे ओर लोकतंत्र खोखला होता जाएगा।

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