Wednesday 10 April 2019

लोकतंत्र के पर्व - मेरी दृष्टि, मेरी अनुभूति (5)

जनता की चाह काले धन के प्रभाव से मुक्त हों आम चुनाव

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के निकट सहयोगी के यहाँ इनकम टेक्स के छापे में करोड़ों रुपए मिले।आजकल इतना नगद रखना ग़ैर क़ानूनी है।ओर कोई समय होता तो यह माना जाता की यह सम्बंधित व्यक्तियों द्वारा अर्जित काला धन है।किंतु समय चुनाव का है ओर जिनके यहाँ छापे पड़े हैं ,उनकी कांग्रेस नेताओं से निकट्ता है।स्वाभाविक रूप से कांग्रेस परेशान है।निश्चित रूप से कांग्रेस शर्मसार होती ,यदि दुनिया को यह पता ना होता की भारत के आम चुनाव धन के प्रभाव से मुक्त हैं।

कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी परेशानी की बात यह है कि इस के जवाब में वह कोई ठोस स्पष्टीकरण नहीं दे पाएगी।कांग्रेस के बड़े नेता अहमद पटेल यह ज़रूर कह रहे हैं की मोदी जी आज सरकार में हैं (कांग्रेस के लिए यह है तो बड़ी पीड़ा की बात) ओर वे सत्ता का दुरुपयोग कर रहे हैं।भारत की चतुर जनता वो जो नहीं कह रहें हैं उसे भी सुन रही है की “हम सत्ता में होते तो ऐसा नहीं होता ओर यह भी की हम कभी सत्ता में आएँगे तो भाजपा वालों तुम्हारी खेर नहीं होगी”।

मोदी शाह की अपनी विशिष्ट ओर विचित्र शैली है।राज करने की भी ओर लड़ाई करने की भी।अनोखपन ,आश्चर्य ओर चोकाना यह उनके परिणाम के सह उत्पाद होते हैं।बाद में क्या होगा शायद यह उनके विचार का हिस्सा नहीं होता है।जो करने जा रहे हैं वह ठीक है या नही शायद इसे वे दस बार सोचते होंगे।नोटबंदी,जीएसटी से लेकर सर्जिकल स्ट्राइक,एअर स्ट्राइक सब ऐसे ही निर्णय हैं।लेने के देने भी पड़ सकते थे,यदि असफलता मिलती तो।पाक के मामले में पाक क्या करेगा,दुनिया क्या करेगी ? इन आशंकाओं से भयभीत रहते तो ये साहसिक निर्णय भारत नहीं कर पाता।व्यापारियों की कही जाने वाली पार्टी की सरकार द्वारा नोटबंदी ओर GST भी आत्मघाती क़दम ही तो कहा जाएगा ना।

हाल के छापों से कांग्रेस थोड़ी परेशान तो ज़रूर होगी।भारत के चुनाव आकार में यह राशि बहुत बड़ी तो नही है पर बहुत छोटी भी नही है।पर चुनाव के बाद इस प्रकरण में जो केस चलेंगे उसमें से निकलना अब आसान नहीं है।जेलों ने अब राजनेताओं के घर देख लिए हैं।

सरकार की निष्पक्षता पर सवाल तो ज़रूर उठेगा।चुनावों के धुरंधर लड़ाके यह ज़रूर फुसफुसा रहे होंगे की बेइमानी के इस दोर में मोदी जी आपने ईमानदारी तो नहीं दिखाई।भविष्य के लिए कई भाजपा नेता भी आशंकित हो सकते हैं।कुछ भी हो यह तो तय है की लड़ाई तो अनेतिकता के ख़िलाफ़ है,लड़ाई का आधार नैतिक अनैतिक कुछ भी हो सकता है।आगे घात प्रतिघात भी होंगे।पर भारत की जनता जानती है की इस घात प्रतिघात में भारत के चुनावों में घुन की तरह घर कर चुका काले धन का प्रभाव विराट से न्यूनतम हो सकेगा जो अन्यथा चुनाव आयोग के लाख प्रयासों के बाद भी नियंत्रण में नही आ पा रहा है।

यह भी सच है की काले धन से चुनावों को प्रभावित करने का श्रेय भी परिस्थितिजन्य साक्ष्य के सिद्धांत के अनुसार उसी दल को जायेगा जो आज़ादी के बाद एक लम्बे अरसे तक निर्बाध शासन करता रहा हो।जो बोया है युगों के बाद भी  भाावी पीढ़ी को कुछ तो दंड भोगना ही पड़ेगा ना।

फ़िलहाल तो खाज में कोढ यह है कि भोपाल के छापों के बाद चुनाव आयोग ने राजस्व विभाग को बुलाकर निर्देश दिये हैं की वह चुनाव में काले धन के उपयोग को रोकने के लिए कड़ाई से प्रयास करे।

भारत का जन-मन तो यही चाहता है की भारत का लोकतंत्र काले धन की छाया से जल्दी से जल्दी मुक्त हो
।भारत की चेतना ने कमर के नीचे प्रहार करने के भीम के कृत्य को अनैतिक मानते हुए भी अधर्म नही माना।


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